Tuesday, July 11, 2017

पहले नेताजी का रिटायरमेंट हो

दिलीप अवस्थी



चलिए इस बहस को एक नए तरीके से समझा, देखा जाये I  आखिर हम क्यों रिटायर हों? गए वक्त की बात है जब अपने समय के विख्यात बल्लेबाज़ विजय मर्चेंट में अपने जीवन का सर्वेश्रेष्ठ शतक लगाने के तुरंत बाद १९५१ में क्रिकेट से सन्यास लेने की  घोषणा कर दी I पूरा देश स्तब्ध था और जानना चाहता था की मर्चेंट ने ऐसा किन परिस्थितियों में किया I जब पत्रकारों ने उनके निर्णय की वजह पूछी तो मर्चेंट बाले, "सन्यास तो तभी लेना चाहिए जब लोग पूछें  अभी क्यों नाकि तब जब लोग कहने लगें अब कब?"

लेकिन मर्चेंट तो व्यावसायिक खिलाड़ी थे I उनके जैसे न जाने कितने और प्रोफेशनल व्यक्तियों ने ऐसी ही नजीरें रखी हैं I काफी किस्से हम सब जानते हैं और ऐसे लोगों  को याद भी करते हैं  पर बात बस यहीं पर ख़त्म हो जाती है I हम तो सिर्फ अपने नेताओं का अनुकरण करना चाहते हैं जब बात हमारे अपने रिटायरमेंट की आती है I सदियों से हमारे नेता को हमने अजर और अमर बने हुए देखा है जब तक वे पांच तत्व में विलीन नहीं हो जाते हैं I अरसे से हम ऐसे नेताओं को देखते चले आ रहे हैं जो बच्चों की तरह डगमगाते हुए मंच तक पहुँचते हैं और कई बार वहां बैठकर सो भी जाते हैं I लेकिन वे पद छोड़ने को तब तैयार होतें हैं जब घरवाले ठठरी का सामान जुटाने लगते हैं I कुछ बिरले ही नेता ऐसे हुए हैं जिन्हें देख कर देश का हौसला बढ़ा हो I

अब एक सवाल और उठाकर देखा जाये I ये नेता आखिर देश के लिए करते क्या हैं? अगर एक आम हिंदुस्तानी नेता का मानसिक चित्र खींचें तो हम एक धूर्त, शातिर और मोटी चमड़ी वाले व्यक्ति की चित्र ही सजीव करेंगे I एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास न कोई डिग्री हैं न डिप्लोमा फिर भी अपने समर्थकों से लेकर पूरे देश को बेवकूफ बनाता रहता है I उसके पास न कोई हुनर है न ट्रेनिंग फिर भी वह चुनाव की राजनीति का मर्मज्ञ है I आमतौर पर उसे कोई वेतन नहीं मिलता है लेकिन उसकी तिजोरी हमेशा बड़े सेठों से भी ज्यादा लबालब रहती I उसे आप घपले करते रंगेहाथ  पकड़ भी लीजिये लेकिन वह अपने गुनाह दूसरों पर थोप कर  कानूनी पंजे से फिसल  जाता है I हम सब उसकी कलाकारी जानते हैं लेकिन मज़ा देखिये वह देश की राजनीति का अहम् किरदार बना ही रहता है जब तक भगवान के घर से न्योता न आ जाये I

शायद हम अपने नेताओं को अंदर से बहुत चाहते हैं और उनसे शिक्षा भी लेते हैं I तभी तो यह रिटायरमेंट जैसे मुद्दे हमेशा उन लोगों के बीच से उठते हैं जिन्हे बिना कुछ ज्यादा किये मालपानी की आदत हो जाती है I ऐसे लोग चाहे वे नौकरी देने वाले हों या करने वाले, अपनी बनाई आरामतलबी की दुनिया में ही लीन रहना चाहते हैं I अपने खोल से बहार निकल कर अपने काम , हुनर पर यक़ीन करने या किसी नए आसमान की ऊंचाईयों को परखने की उनमे हिम्मत ही नहीं होती 

आज देश भर की सरकारें रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने या कर्मचारियों की संख्या बल कम  करने के फैसले के बीच  झूलती नज़र आ रही हैं I जैसे ही वित्त विभाग चेतावनी देता है की उसके पास  बढ़ते वेतन, भत्ते या पेंशन देने के लिए रोकड़ा नहीं है, कर्मचारियों को जबरन रिटायर करने का फैसला ले लिया जाता है I जब कर्मचारी संगठनों की चलती है तो रिटायरमेंट की उम्र बढ़ने की बात होने लगती है I लेकिन अभी भी सरकारेंअधिकारियों -कर्मचारियों की उपियोगिता या उनकी उत्पादकता पर प्रश्नचिन्ह लगाने से कतरा रही हैं I

हमारी सरकारों के कर्णधार यह क्यों नहीं देख पा रहे हैं की हमारे सरकारी तंत्र में काम करने वाले काम और उनकी मैनेजरी करने वाले लोगों की भरमार है I चाहे काम कितना भी संजीदा हो, सरकारी फाइल का रचयिता आज भी एक क्लर्क या हेड क्लर्क होता है I इसी तरह कितना ही जघन्य अपराध हो, उसकी विवेचना आज भी एक इंस्पेक्टर यासब -इंस्पेक्टर ही करता है I मोटी तनख्वाहों वाले अधिकारी चाहे वे आईएएस हों या आईपीएस सिर्फ सुपरवाइजरी ही करते हैं I अपने अड़तीस  वर्ष के पत्रकारिता जीवन में मैंने किसी वरिष्ठ अधिकारी को न तो फाइल बनाते देखा न विवेचना करते I ये लोग सिर्फ दस्तखत पर दस्तखत बनाना जानते हैं 

मोटी  बुद्धि कहती है कि जितने वरिष्ठ आप होते जाते हैं आपको उतने ही संजीदा मामलों से  खुद निपटना चाहिए और कनिष्ठ अधिकारीयों का प्रेरणास्रोत बनानाचाहिए I क्रिकेट टीम  में अगर धोनी, विराट कोहली और युवराज सिंह आराम से बैठें और दारोमदार नए खिलाड़ियों पर छोड़ दे तो कैसे रहे ? वर्षों बाद भी आप आमिर खान की फिल्म उसकी शानदार एक्टिंग देखने के लिए ही जाते हैं I किसी भी धंधे का मूलमंत्र उसमे कार्यरत व्यक्तियों की उपियोगिता, उत्पादकता और जवाबदेही ही है I सरकारें रिटायरमेंट आयु पर चर्चा करें अच्छा है लेकिन देश को नेताओं की रिटायरमेंट उम्र पर भी गहन चिंतन करना चाहिए I वरना ये ख़ादीधारी  अगर आजीवन देश का दोहन कर सकते हैं तो फिर हम सब क्यों नहीं?

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